पुष्प वर्षा के साथ नगर परिक्रमा में गूंजे श्री गुरु राम राय जी महाराज के जयकारे
ऐतिहासिक नगर परिक्रमा में दूनवासियों ने गुरु की संगत का किया जोरदार स्वागत
श्री गुरु महाराज जी की प्यारी संगतों के साथ नगर परिक्रमा में शामिल हुए दूनवासी
25,000 संगतें शामिल हुई नगर परिक्रमा में
Jhanda Mela 2024 देहरादून में श्री झंडेजी के आरोहण के साथ ऐतिहासिक झंडा महोत्सव की शुरुआत हो गई है, जो 17 अप्रैल तक चलेगा. इसके लिए हफ्तेभर पहले से ही संगतें पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों से लाखों की संख्या में पहुंची हैं. कई संगतें रात से ही श्रीझंडेजी के आरोहण के लिए दरबार साहिब में इंतजार करती नजर आईं और झंडा आरोहण के वक्त लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा.आपको बता दें कि पूरे शहर में आध्यात्मिकता, भाईचारे और सांप्रदायिक सद्भाव का रंगीन और जीवंत उत्सव मनाया जाता है। इस बहुप्रतीक्षित मेला का इंतज़ार देश भर की संगतों और लाखों भक्तों को रहता है।
सद्भाव और भाईचारे का जश्न मनाते हैं श्रद्धालु Jhanda Mela 2024
देहरादून में झंडा मेला न केवल एक धार्मिक त्योहार के रूप में मनाया जाता है, बल्कि सही मायने में एक शहरी त्योहार के रूप में मनाया जाता है, जिसमें सभी लोग बिना किसी प्रतिबंध के शामिल होते हैं और सद्भाव और भाईचारे का जश्न मनाते हैं, जिसमें सभी भाग लेते हैं। महंत देवेंद्र दास ने मीडिया को जानकारी देते हुए कहा कि सिखों के सातवें गुरु हर राय महाराज के बड़े पुत्र गुरु रामराय महाराज साल 1675 में चैत्र मास कृष्ण पक्ष की पंचमी के दिन देहरादून में आए थे. इसके ठीक एक साल बाद यानी 1676 में इसी दिन उनके सम्मान में उत्सव मनाया जाने लगा और यहीं से झंडे जी मेले की शुरुआत हुई.
गुरु रामराय का जन्म पंजाब में हुआ था और उनमें बचपन से ही अलौकिक शक्तियां थीं. उन्हें छोटी उम्र में ही असीम ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी. तत्कालिक मुगल शासक ने उन्हें महाराज की उपाधि दी थी. औरंगजेब उनसे इतना प्रभावित था कि उसने गढ़वाल के राजा फतेह शाह को महाराज का खास ख्याल रखने के निर्देश दिए. महाराज के डेरा डालने के कारण ही इस शहर का नाम देहरादून पड़ गया है.
मन्नत लेकर पहुंची संगतें
झंडा महोत्सव में देशभर से लाखों की संख्या में संगतें पहुंची हैं. हिमाचल प्रदेश की श्रद्धालु ने कहा कि वह पहली बार झंडा महोत्सव में शामिल होने के लिए आई हैं. वह देखना चाहती थीं कि झंडे जी को कैसे चढ़ाया जाता है. उन्होंने पहली बार यह इतनी भीड़ देखी है. जालंधर की रहने वालीं शालिनी ने कहा कि वह कई सालों से यहां आ रही हैं. उनके माता-पिता यहां आते थे. यहां जो भी संगत सच्चे मन से कोई मनोकामना लेकर आती है, वह पूर्ण होती है.
दिल्ली से आये विजय बताते हैं कि पिछले 7 सालों से वह हर साल परिवार के साथ यहां महोत्सव में आ रहे हैं और उन्हें यहां बहुत सुकून मिलता है. पंजाब से आई मानसी बताती हैं कि उन्हें यहां आते हुए 42 साल हो गए हैं. मेला खिलौनों, कपड़ों, आभूषणों और गहनों की रंग-बिरंगी दुकानों से भरा हुआ है, और प्राचीन वस्तुओं से लेकर हाथ से मुद्रित वस्त्रों तक कुछ भी सड़क पर फेरीवालों के साथ शहर के बीचों-बीच अपनी जगह बना लेता है। लोग अपने परिवारों के साथ झंडा साहिब के परिसर में जाते हैं, झंडा जी को धार्मिक वस्त्र बांधते हैं और आशीर्वाद लेते हैं।
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