Amazing Success Story : कचरे से कंचन बना रही फुटपाथशाला !

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Amazing Success Story गाजियाबाद के इंदिरापुरम में एक स्‍कूल फुटपाथ पर चलता है। हर रोज इसमें 40 बच्‍चे पढ़ने आते हैं। इनसे खास तरह की फीस ली जाती है। वह फीस होती है पढ़ने की फीस है बेकार प्लास्टिक बोतलें, NTPC से रिटायर्ड अफसर चलाती हैं फुटपाथशाला ! जी हाँ सही पढ़ा आपने , इंसान की एक छोटी सी पहल भी जीवन में बड़ा बदलाव ला सकती है. ये बात गाजियाबाद की नीरजा सक्सेना बेहतर समझती हैं. इसीलिए उन्होंने एक ऐसी सकारात्मक शुरुआत की है, जिससे गरीब बच्चों को शिक्षा भी मिलेगी और पर्यावरण में भी सुधार होगा.

 

फीस है बेकार की प्लास्टिक की बोतलें Amazing Success Story

Amazing Success Story

इंदिरापुरम के ज्ञान खंड चार में रहने वाली नीरजा सक्सेना नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (NTPC) से रिटायर्ड अधिकारी हैं। उनकी पहल से इस खास पाठशाला में बच्चों को शिक्षा के साथ पर्यावरण संरक्षण का पाठ भी पढ़ाया जाता है। नीरजा ने NBT से बातचीत में बताया कि उनके परिवार के सदस्य न्यूजीलैंड में रहते हैं। कोरोना काल में आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों की भूख को उन्होंने करीब से देखा था। इस पर उन्होंने अन्नदान करना शुरू किया। हालात बदले तो ऐसे बच्चों को मुख्यधारा में लाने के प्रसास किए। उनको पढ़ाने के लिए प्रेरित किया। शुरू में ही अच्छे रेस्पॉन्स ने उनको हिम्मत दी। इसके बार यह कारवां बढ़ता गया।


फुटपाथशाला का मकसद नेक था

नीरजा बताती हैं, बच्चों के माता-पिता काम पर जाने लगे तब उन्होंने बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया। इस सोच के साथ फुटपाथशाला चलाई कि ये बच्चे गाली-गलौज न सीखें, गलत राह पर न जाएं, नशे आदि का सेवन न करें। यह तभी संभव है जब वे शिक्षित होंगे। बच्चों का समय अच्छे काम में लगे। यही सोचकर उन्होंने फ्री कक्षा लगानी शुरू की।

क्‍लास में रोज आते हैं बच्‍चे

बच्चों को कविताओं से, प्रार्थना से, शिक्षाप्रद कहानियों से, खेल-खेल में सिखाना आदि तरीकों से उनमें पढ़ाई की रुचि पैदा की। आज उनके पास 60 से भी ज्यादा बच्चे हैं। गर्मी हो या सर्दी रोज कक्षा में पढ़ने आना चाहते हैं। इस वर्ष उनके 25-30 बच्चों का अच्छे स्कूल में एडमिशन हो गया और 4 बच्ची के लिए स्पॉन्सरशिप मिल गई। यहां पढ़ने वाले लवकुश, चंदन, भारती और अन्य बच्चों ने बताया कि यदि मैडम नहीं होतीं तो वे अक्षर के ज्ञान से रूबरू नहीं हो पातीं।

नीरजा ने बताया कि इन बच्चों से फीस के रूप में बेकार प्लास्टिक की बोतलें, पन्नी और अन्य प्लास्टिक की सामग्री ली जाती है। ये बच्चे अपने आसपास फैले प्लास्टिक वेस्ट को एकत्र कर लाते हैं। उसे हम एक एनजीओ की मदद से आईपीसीएल को देते हैं। वह इसे रिसाइकिल कर इसका उपयोग करते हैं। उससे ईको-ब्रिक्स बनाया जाता है। इस पहल से न केवल पर्यावरण का संरक्षण होता है बल्कि बच्चे भी साफ सफाई को लेकर जागरूक हो रहे हैं। आज हालत यह है कि बच्चे आसपास के पार्क में जाकर वहां से वेस्ट प्लास्टिक एकत्र कर उन्हें देते हैं। कभी खुद कूड़ा फैलाने वाले बच्चे अब किसी भी सड़क पर पड़ा प्लास्टिक झट से उठा लेते हैं। उनकी इस कोशिश में आसपास रहने वाले भी आर्थिक और अन्य तरह से मदद करते हैं।

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