Katyuri Jiya Rani उत्तराखंड की अमर गाथाओं में एक नाम है अद्भुत शख्सियत जिया रानी का जिनकी ज़िंदगी किसी रोचक कथा से कम नहीं है। जिया रानी यानि मौला देवी हरिद्वार (मायापुर) के राजा अमरदेव पुंडीर की पुत्री थी। सन 1192 में देश में तुर्कों का शासन स्थापित हो गया था, मगर उसके बाद भी किसी तरह दो शताब्दी तक हरिद्वार में पुंडीर राज्य बना रहा। मौला देवी, राजा प्रीतमपाल की दूसरी रानी थी। मौला देवी को राजमाता का दर्जा मिला और उस क्षेत्र में माता को ‘जिया’ कहा जाता था इसलिए उनका नाम जिया रानी पड़ गया।
Katyuri Jiya Rani जिया रानी एक बेहद खूबसूरत महिला थी
उस समय दिल्ली में तुगलक वंश का शासन था। मध्य एशिया के लूटेरे शासक तैमूर लंग ने भारत की महान समृद्धि और वैभव के बारे में बहुत बातें सुनी थीं। भारत की दौलत लूटने के मकसद से ही उसने आक्रमण की योजना भी बनाई थी। उस दौरान दिल्ली में फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ के निर्बल वंशज शासन कर रहे थे। इस बात का फायदा उठाकर तैमूर लंग ने भारत पर चढ़ाई कर दी।
वर्ष 1398 में समरकंद का यह लुटेरे शासक तैमूर लंग, मेरठ को लूटने और रौंदने के बाद हरिद्वार की ओर बढ़ रहा था। उस समय वहाँ वत्सराज देव पुंडीर शासन कर रहे थे। उन्होंने वीरता से तैमूर का सामना किया मगर शत्रु सेना की विशाल संख्या के आगे उन्हें हार का सामना करना पड़ा।उत्तर भारत में गंगा-जमुना-रामगंगा के क्षेत्र में तुर्कों का राज स्थापित हो चुका था। इन लुटेरों को ‘रूहेले’ (रूहेलखण्डी) भी कहां जाता था। रूहेले राज्य विस्तार या लूटपाट के इरादे से पर्वतों की ओर गौला नदी के किनारे बढ़ रहे थे।
इस दौरान इन्होंने हरिद्वार क्षेत्र में भयानक नरसंहार किया। जबरन बड़े स्तर पर मत परिवर्तन हुआ और तत्कालीन पुंडीर राजपरिवार को भी उत्तराखंड के नकौट क्षेत्र में शरण लेनी पड़ी जहाँ उनके वंशज आज भी रहते हैं और ‘मखलोगा पुंडीर’ के नाम से जाने जाते हैं। लूटेरे तैमूर ने एक टुकड़ी आगे पहाड़ी राज्यों पर भी हमला करने के लिए भेजी। जब ये सूचना जिया रानी को मिली तो उन्होंने फ़ौरन इसका सामना करने के लिए कुमाऊं के राजपूतों की एक सेना का गठन किया। तैमूर की सेना और जिया रानी के बीच रानीबाग़ क्षेत्र में भीषण युद्ध हुआ, जिसमें तुर्क सेना की जबरदस्त हार हुई।
जिया रानी एक बेहद खूबसूरत महिला थी इसलिए हमलावरों ने उनका पीछा किया और उन्हें अपने सतीत्व की रक्षा के लिए एक गुफा में जाकर छिपना पड़ा।जब राजा प्रीतम देव को इस हमले की सूचना मिली तो वो जिया रानी से चल रहे मनमुटाव के बावजूद स्वयं सेना लेकर आए और मुस्लिम हमलावरों को मार भगाया। इसके बाद वो जिया रानी को अपने साथ पिथौरागढ़ ले गए। राजा प्रीतमदेव की मृत्यु के बाद पुत्र धामदेव को राज्य का कार्यभार दिया गया किन्तु धामदेव की अल्पायु की वजह से जिया रानी को उनका संरक्षक बनाया गया। रानी स्वयं शासन संबंधी निर्णय लेती थी और राजमाता होने के चलते उन्हें जिया रानी भी कहा जाने लगा।