Alop Shankari Mandir : अलोप शंकरी के झूले से जुडी आस्था की डोर

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देहरादून से अनीता तिवारी की रिपोर्ट –

Alop Shankari Mandir  अलोपी देवी मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में प्रयागराज के अलोपीबाग क्षेत्र में स्थित एक मंदिर है। यह पवित्र संगम के निकट है, जहाँ गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदियाँ मिलती हैं। कुम्भ मेला इस स्थान के निकट ही है। कुछ ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार, मराठा योद्धा श्रीनाथ महादजी शिंदे ने वर्ष 1771-1772 में अपने प्रयागराज प्रवास के दौरान संगम स्थल का विकास किया था। कालान्तर में 1800 के दशक में महारानी बैजाबाई सिंधिया ने प्रयागराज में संगम घाटों और मंदिरों के नवीनीकरण के लिए कुछ कार्य किए। इस मंदिर की विशेषता यह है कि इस मंदिर में किसी भी देवी-देवता की मूर्ति नहीं है, बल्कि यहां एक लकड़ी का झूला या ‘डोली’ है, जिसकी पूजा की जाती है।

courtsy आशीष भटनागर

अलोपी अर्थात लोप या गायब हुई होता है। इसके नाम की उत्पत्ति हिंदू मान्यता में निहित है कि अपनी पत्नी सती की मृत्यु के बाद, दुखी शिव उनके मृत शरीर के साथ आकाश में विरक्त होकर यात्रा करते रहते थे। इस पीड़ा से मुक्ति दिलाने के लिए विष्णु ने शव पर अपना ्सुदर्शन चक्र फेंका, जिसके परिणामस्वरूप शरीर के विभिन्न हिस्से भारत के विभिन्न स्थानों पर गिरे, जो देवी के शरीर के अंगों के स्पर्श से पवित्र हो गए और इसलिए उन्हें पवित्र माना गया। तीर्थयात्रा के लिए स्थान. अंतिम भाग बायां हाथ इस स्थान पर गिरा एवं गिरते ही लोप या गायब हो गया, जिससे इसे “अलोपी” नाम दिया गया।

यहां गिरा था माता सती का पंजा Alop Shankari Mandir

Alop Shankari Mandir

अलोपी देवी मंदिर को अलोपशंकरी शक्तिपीठ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि प्रयागराज के इस स्थान पर देवी सती के हाथ का पंजा कटकर गिरा लेकिन उनका पंजा यहां के एक कुंड में गिरते ही वो अलोप यानी गायब हो गया। तबसे इस मंदिर का नाम अलोपशंकरी रखा गया। अलोप का अर्थ गायब होता है और शंकरी मां पार्वती को ही कहा जाता है। मंदिर को ललिता मंदिर और महादेवेश्वरी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। प्रयागराज के अलोपीबाग में ये शक्तिपीठ मौजूद है, उसका नाम भी इसी मंदिर की प्रसिद्धि के नाम पर रखा गया है।


यहां पालने की होती है पूजा
इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि मंदिर में किसी मूर्ति की जगह एक लकड़ी के पालने यानी डोली की पूजा की जाती है। इस मंदिर को 51 शक्तिपीठों में से एक कहा जाता है। मंदिर प्रांगण में एक कुंड के ऊपर चांदी का प्लेटफॉर्म यानी चबूतरा बना होता है जिस पर पालना लटकता रहता है, यह दस फीट चौड़े कुंड पर लटका हुआ है। यहां भक्त रक्षा सूत्र बांधकर देवी से सुरक्षा की मनोकामना मांगते हैं। नवरात्र के खास मौके पर यहां भव्य कार्यक्रम होते हैं और मेला भी लगता है।

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