Parenting Tips कई बार माता-पिता बच्चों को खेलने-कूदने से इसलिये रोकते हैं, क्योंकि उनको लगता है कि कहीं बच्चे को चोट न लग जाए। लेकिन उनका अत्यधिक रक्षात्मक व्यवहार बच्चे को डरपोक बनाता है। मानव व्यवहार विशेषज्ञों का मानना है कि खेल-खेल में गिरना, हल्की-फुल्की चोट लगना भी एक तरह का अनुभव है, यह जिंदगी की बड़ी चोटों और चुनौतियों से लड़ना सिखाता है। कल्पना करिये जिसने जीवन में कभी कोई संकट नहीं झेला है और न ही कोई चोट खाई है, वह गंभीर संकट आने पर या किसी तरह की चोट खाने पर कैसा रिस्पांस देगा।
खुद करके ज्यादा सीखता है बच्चा Parenting Tips
एक जमाना था जब कहा जाता था- “खेलोगे-कूदोगे तो बनोगे खराब, पढ़ोगे-लिखोगे तो बनोगे नवाब।” इस दो लाइन की नसीहत का जो मतलब निकाला गया, वह यह था कि बच्चा केवल पढ़ाई पर फोकस करें, खेलने-कूदने में समय नष्ट न करें, लेकिन बाल मनोविज्ञानी या चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट्स का कहना है कि यह गलत व्याख्या है। मानव की एक खासियत यह है कि वह जितना पढ़कर सीखता है, उससे ज्यादा वह करके सीखता है। इसलिए कहा जाता है कि ‘गलत वह नहीं है जिससे कुछ गलतियां हो जाती हैं, गलत वह है जिससे कोई गलती होती ही नहीं है।’ गलतियां भी उसी से होती हैं, जो कुछ करता है। जो कुछ करता ही नहीं है उससे गलतियां कैसे होंगी। यानी कुछ नहीं करने से अच्छा है कि कुछ करिये।
ऐसा नहीं करने वाले बच्चों के साथ क्या होता है? ऐसे बच्चे, जो ज्यादातर घर में ही रहते हैं, बाहर की दुनिया से कटे रहते हैं, अपनी युवावस्था में अपने साथ के अन्य बच्चों से अलग-थलग और अति अंतर्मुखी हो जाते हैं। वे एक मायने में खुद को बहुत पढ़ा-लिखा बता सकते हैं, लेकिन चार लोगों के सामने बोलने में उनका आत्म विश्वास डोल जाता है। वे बेहद शर्मीले होते हैं, और विकास की रफ्तार में बहुत पिछड़ जाते हैं। वे खुद गलती न करके भी हमेशा अपराधबोध में जीने को विवश रहते हैं। ऐसे बच्चे बड़े होकर अपनी बात प्रमुखता से नहीं उठा पाते हैं, नेतृत्व क्षमता बेहद कमजोर होती है
‘व्यस्तता’ बुरी आदतों से बचाती है
बचपन में खेलने-कूदने और दौड़ने-भागने से बच्चों का शारीरिक विकास तो होता ही है, साथ ही वे मानसिक रूप से खुद में इतने व्यस्त रहते हैं कि उनमें आपराधिक आदतें नहीं पनपती हैं। कहा भी गया है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। इसके उलट जो बच्चे अपना समय पढ़ने-लिखने के साथ खेलने-कूदने में लगाते हैं, वे ऐसी बातों से दूर रहते हैं। आजकल बच्चे अधिकतर समय बंद घरों या फ्लैटों में रहते हैं। जिससे वे पार्क या मैदानों से दूर रहते हैं। साथ ही मोबाइल की वजह से छोटे बच्चे भी सोशल मीडिया पर उलजुलूल चीजें देखकर खुद को मानसिक विकारों से घिरा हुआ बना रहे हैं।