Special Story By : Ashish Tiwari , Dehradun
Bhagat Singh Koshyari नए मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान सोमवार शाम लगभग 5 बजे तक हो ही जाएगा। लेकिन जिस तरह से पहाड़ ने स्पष्ट बहुमत देकर भाजपा को सरकार बनाने का एक बार फिर मौका दिया लेकिन कई दिन बीत जाने के बाद भी केंद्रीय नेता और प्रदेश संगठन मुख्यमंत्री के नाम पर मोहर नहीं लगा पाए , उससे लगता है कि भाजपा में सीएम के नाम को लेकर अभी तक एक राय नहीं है।
Bhagat Singh Koshyari का प्रभाव
Bhagat Singh Koshyari यही वजह है कि बीते हुए हर दिन के साथ एक नए दावेदार ने दिल्ली दरबार में अपना बायोडाटा पेश कर दिया। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी चुनाव के दौरान कई बार मंच से यह कह चुकी है कि 2022 का चुनाव पार्टी पुष्कर सिंह धामी के चेहरे पर लड़ रही है । अघोषित रूप से कई बार रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी पुष्कर सिंह धामी को इशारों इशारों में 2022 की नई सरकार का मुखिया भी बता दिया था । लेकिन लगता है भाजपा नतीजों के बाद से ही कई जटिल चुनौतियां का सामना कर रही है । वरिष्ठ विधायकों ने जहां अपनी दावेदारी सीएम कुर्सी के लिए जताई , तो वही भारी भरकम अनुभव रखने वाले सतपाल महाराज और धन सिंह रावत के साथ-सथ अनिल बलूनी और कई वरिष्ठ विधायकों ने भी सीएम की कुर्सी के लिए अपना नाम आगे किया । यही वजह है कि फिलहाल रविवार को भी लोगों की नजर दिल्ली पर टिकी रही कि कब और किसका नाम केंद्र से फाइनल होगा , और कैबिनेट में किन विधायकों को जगह मिलेगी ।
Bhagat Singh Koshyari इन सबके बीच सियासी समीकरण के ताने बाने में एक नाम फिर सुर्खियों में है और वह है महाराष्ट्र के राज्यपाल और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी का।
उत्तराखण्ड की राजनीति में Bhagat Singh Koshyari भगत सिंह कोश्यारी का किरदार बेहद अहम है। राज्य बनने से लेकर अब तक वे सक्रिय हैं। कहा जा सकता है कि यहां की राजनीति में उनकी प्रासंगिकता बढ़ी ही है। भले ही वे महज छह महीने के लिए मुख्यमंत्री रहे हों, लेकिन भाजपा में उनका जैसा पावर सेंटर दूसरा नहीं दिखता। आज भी यहां की सियासी बिसात का एक सिरा महाराष्ट्र के गवर्नर हाउस से जुड़ा हुआ है। ध्यान देने वाली बात है कि कोश्यारी की शागिर्दी में जितने भी नेता हुए, सबने राजनीति में सफलता हासिल की है या कर रहे हैं। यानी भगत दा वो बरगद हैं, जिसके नीचे आसानी से अन्य पेड़ भी पनप गए। राज्य में अगली पांत के कई भाजपा नेताओं से लेकर नई पीढ़ी के सफल युवा नेता कोश्यारी कैंप से ही ताल्लुक रखते हैं।
उत्तराखण्ड के अन्य बड़े नेताओं पर नजर डालें तो भाजपा में ही पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी अब हाशिए पर चले गए हैं। उम्र के साथ ही उनका कैंप भी कमजोर होता चला गया। अब केवल उनकी बेटी ऋतु खंडूड़ी को ही उनकी एकमात्र राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जा रहा है। कांग्रेस के कद्दावर नेता हरीश रावत भी की स्थिति भी कुछ ऐसी ही हो चली है। हरीश रावत ने भी कांग्रेस के लिए नेताओं की फौज खड़ी की। लेकिन पता नहीं किन वजहों से अधिकांश नेता उनके विरोधी होते चले गए। पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक भी गाहे बगाहे सूबे की सियासत में हलचल मचा देते हैं। उनके समर्थकों की कतार भी लंबी है। इन सबसे Bhagat Singh Koshyari भगतदा इसी मायने में अलग हैं कि उन्होंने अपने कैंप के नेताओं को जड़ें जमाने का पूरा मौका दिया। निर्विवाद छवि, सादा जीवन और पार्टी के प्रति निष्ठा् उनकी यूएसपी रही है। जिसने उन्हें महाराष्ट्र जैसी काजल की कोठरी में बेदाग रखा हुआ है।
लिहाजा अगर प्रदेश को एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आशीर्वाद से पुष्कर सिंह धामी , रेखा आर्य और Bhagat Singh Koshyari भगत दा के तमाम राजनीतिक चंद्रगुप्तों को अहम जिम्मेदारी मिलती है तो इसमें कोई दो राय नहीं एक बार फिर पहाड़ की सरकार में भगत दा का ही जलवा दिखाई देगा। हालांकि कयास यह भी लगाया जा रहा है कि निवर्तमान सीएम पुष्कर सिंह धामी को दोबारा मुख्यमंत्री बनाने के लिए टीम कोश्यारी पूरी तरह से पार्टी में केस लड़ रही है । लेकिन फैसला तो अंतिम आलाकमान को ही लेना है लेकिन अगले कुछ घंटे नज़र राजनीति के पहाड़ी दिग्गज भगत दा पर भी टिकी है।
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